Saturday, October 18, 2008

मुक्तक 5

जीवन का सरोकार न जाने देना
अच्छे जो हों आसार न जाने देना
इक लम्हे में सदियों के छिपे हैं संकेत
इक लम्हे को भी बेकार न जाने देना

अंधे के लिए दिन का उजाला बेकार
साहस न हो चलने का तो रस्ता बेकार
विश्वास अगर खुद पर नहीं है तुमको
इस हाल में आँखों पर भरोसा बेकार

बिसराई हुई रीत नहीं होना है
बिन गाया हुआ गीत नहीं होना है
संघर्ष जो हालात से करते हैं उन्हें
हालात से भयभीत नहीं होना है

निर्जीव हैं ये रात के सपने जब तक
आकार में इनको नहीं लाते जब तक
विश्वास हो कैसे कि खिले हैं बूटे
महकार हवाओं में न फैले जब तक

डॉ. मीना अग्रवाल

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