Friday, November 7, 2008

मुक्तक 23

हम डगर अपनी छोडें, यह संभव नहीं
आत्मा अपनी बदलें, यह संभव नहीं
फ़ैशनों की नुमाइश में रहते हुए
मूल से अपने बिछुड़ें यह संभव नहीं

मेरे सपनों का आदर्श मानव है
सोच यह मेरी बदले असंभव है
मेरी पहचान दुनिया में सबसे अलग
मैं हूँ भारत की नारी , मुझे गर्व है

ताज़ा फूलों के अंबार भेजूँ तुम्हें
बस अगर हो तो सौ बार भेजूँ तुम्हें
नित नई ख़ुशबुओं को जो आकार दे
सुर्ख मेंहदी की महकार भेजूँ तुम्हें

आदमी से बड़ा धन न बन पाएगा
सोचते थे समय तो बदल जाएगा
हम रहेंगे सफ़र में सदा साथ-साथ
प्यार बाँटेंगे, अपनत्व भी आएगा !

डॉ. मीना अग्रवाल

No comments: