Tuesday, November 18, 2008

मुक्तक 28

मैं कि हूँ उसके भीतर से परिचित बहुत
जानती हूँ तो कहती हूँ विश्वास से
उसकी आँखों में होगा कोई और भी
जब वह जाएगा उठकर मेरे पास से !

क्या ये पहलू समर्पण न कहलाएगा
क्या कोई इसका मतलब समझ पाएगा
हम बनाएँगी औ' सोचती जाएँगी
क्या यह पकवान उनको पसंद आएगा !

डॉ. मीना अग्रवाल