Monday, March 22, 2010

मुक्तक 37

घर में बिटिया का जन्म एक उत्सव बन जाता है.जब माँ अपने बच्चे को
पहली बार अपनी गोद में उठाती है तो उसे लगता है कि मानो सारा संसार ही
उसकी बाँहों में सिमटकर आ गया हो.देखिए माँ की इसी भावना को----

अभी चहका ही था आँचल में मेरे इक नया जीवन
बहारों का जो मौसम जा रहा था, फिर पलट आया
लिया था गोद में पहले-पहल जब अपनी बिटिया को
लगा था, विश्व जैसे मेरी बाँहों में सिमट आया .


डॉ. मीना अग्रवाल

Friday, March 12, 2010

मुक्तक 36

ये खेत हमने दिए, क्यारियाँ हमीं ने दीं
ज़मीं की गोद को फुलवारियाँ हमीं ने दीं
उदास-उदास-सी चुप से भरा हुआ था घर
तुम्हारे सुनने को किलकारियाँ हमीं ने दीं !

विरह का तीर तुम्हारी कमान छोड़ गई
बिलखती-चीख़ती विरहन की जान छोड़ गई
ज़रा-सा ध्यान जो भटका तो मौलकर चूड़ी
कलाइयों में लहू का निशान छोड़ गई

डॉ. मीना अग्रवाल

Wednesday, March 3, 2010

मुक्तक 35

समय के हाथ में जीवन का आसरा हम हैं
कला की जान हैं, कविता की आत्मा हम हैं
इक एक रूप के पीछे हमारे रूप अनेक
परी हैं, देवी हैं, नारी हैं, अप्सरा हम हैं !

किसी को हाल जो भीतर का है पता न चले
किसी को दर्द के एहसास की हवा न लगे
दुखों को सहने का ढब जानती हैं बालाएँ
उदास होके भी चेहरा उदास-सा न लगे !

डॉ. मीना अग्रवाल